सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर जयंती -प्रदेश मानवाधिकार संगठन

सुब्रह्मण्यन् चन्द्रशेखर (१९ अक्टूबर१९१०-२१ अगस्त१९९५) विख्यात भारतीय-अमेरिकी खगोलशास्त्री थे। भौतिक शास्त्र पर उनके अध्ययन के लिए उन्हें विलियम ए. फाउलर के साथ संयुक्त रूप से सन् १९८३ में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला।
खगोल भौतिकी के क्षेत्र में डॉ॰ चंद्रशेखर, चंद्रशेखर सीमा यानी चंद्रशेखर लिमिट के लिए बहुत प्रसिद्ध हैं। चंद्रशेखर ने पूर्णत गणितीय गणनाओं और समीकरणों के आधार पर `चंद्रशेखर सीमा' का विवेचन किया था और सभी खगोल वैज्ञानिकों ने पाया कि सभी श्वेत वामन तारों का द्रव्यमान चंद्रशेखर द्वारा निर्धारित सीमा में ही सीमित रहता है।
सन् 1935 के आरंभ में ही उन्होंने ब्लैक होल के बनने पर भी अपने मत प्रकट किए थे, लेकिन कुछ खगोल वैज्ञानिक उनके मत स्वीकारने को तैयार नहीं थे।
यद्यपि अपनी खोजों के लिये डॉ॰ चंद्रशेखर को भारत में सम्मान तो बहुत मिला, पर 1930 में अपने अध्ययन के लिये भारत छोड़ने के बाद वे बाहर के ही होकर रह गए और लगनपूर्वक अपने अनुसंधान कार्य में जुट गए। चंद्रशेखर ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में तारों के वायुमंडल को समझने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और यह भी बताया कि एक आकाश गंगा में तारों में पदार्थ और गति का वितरण कैसे होता है। रोटेटिंग प्लूइड मास तथा आकाश के नीलेपन पर किया गया उनका शोध कार्य भी प्रसिद्ध है।
डॉ॰ चंद्रा विद्यार्थियों के प्रति भी समर्पित थे। 1957 में उनके दो विद्यार्थियों त्सुंग दाओ ली तथा चेन निंग येंग को भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अनेक पुरस्कारों और पदकों से सम्मानित डॉ॰ चंद्रा का जीवन उपलब्धियों से भरपूर रहा। वे लगभग 20 वर्ष तक एस्ट्रोफिजिकल जर्नल के संपादक भी रहे। डॉ॰ चंद्रा नोबेल पुरस्कार प्राप्त प्रथम भारतीय तथा एशियाई वैज्ञानिक सुप्रसिद्ध सर चंद्रशेखर वेंकट रामन के भतीजे थे। सन् 1969 में जब उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने उन्हें पुरस्कार देते हुए कहा था, यह बड़े दुख की बात है कि हम चंद्रशेखर को अपने देश में नहीं रख सके। पर मैं आज भी नहीं कह सकती कि यदि वे भारत में रहते तो इतना बड़ा काम कर पाते।
डॉ॰ चंद्रा सेवानिवृत्त होने के बाद भी जीवन-पर्यंत अपने अनुसंधान कार्य में जुटे रहे। बीसवीं सदी के विश्व-विख्यात वैज्ञानिक तथा महान खगोल वैज्ञानिक डॉ॰ सुब्रह्मण्यम् चंद्रशेखर का 22 अगस्त 1995 को 84 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से शिकागो में निधन हो गया। इस घटना से खगोल जगत ने एक युगांतकारी खगोल वैज्ञानिक खो दिया। यूं तो डॉ॰ चंद्रशेखर ने काफी लंबा तथा पर्याप्त जीवन जिया पर उनकी मृत्यु से भारत को अवश्य धक्का लगा है क्योंकि आज जब हमारे देश में `जायंट मीटर वेव रेडियो टेलिस्कोप' की स्थापना हो चुकी है, तब इस क्षेत्र में नवीनतम खोजें करने वाला वह वैज्ञानिक चल बसा जिसका उद्देश्य था- भारत में भी अमेरिका जैसी संस्था `सेटी' (पृथ्वीतर नक्षत्र लोक में बौद्धिक जीवों की खोज) का गठन। आज जब डॉ॰ चंद्रा हमारे बीच नहीं हैं, उनकी विलक्षण उपलब्धियों की धरोहर हमारे पास है जो भावी पीढ़ियों के खगोल वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी।
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