मानवाधिकार बनाम डिजिटलाइजेशन
मानवाधिकार बनाम डिजिटलाइजेशन
इक्कीसवीं सदी को तकनीकी क्रांति और डिजिटल युग का युग कहा जा सकता है। आज मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में डिजिटलाइजेशन (Digitalization) ने अपनी गहरी पैठ बना ली है — चाहे वह शासन-प्रशासन हो, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापार या सामाजिक संपर्क। दूसरी ओर, डिजिटल माध्यमों के विस्तार के साथ ही मानवाधिकारों की सुरक्षा को लेकर नई चुनौतियाँ भी उत्पन्न हो रही हैं। इस प्रकार, यह प्रश्न उठता है कि क्या डिजिटलाइजेशन मानवाधिकारों का रक्षक है या उनके लिए एक खतरा?
डिजिटलाइजेशन ने पारदर्शिता, सूचना के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिक सुविधाओं की उपलब्धता को सरल बनाया है। शासन व्यवस्था में ऑनलाइन पोर्टल्स, डिजिटल भुगतान, ई-गवर्नेंस, ऑनलाइन शिकायत निवारण तंत्र आदि के माध्यम से नागरिकों के अधिकारों की पहुँच सशक्त हुई है।उदाहरण के लिए — डिजिटल इंडिया अभियान ने नागरिकों को सेवाओं तक सीधी पहुँच प्रदान की है, जिससे “अधिकारों की सुलभता” बढ़ी है।
डिजिटलाइजेशन से उत्पन्न मानवाधिकार चुनौतियाँ
- गोपनीयता का अधिकार (Right to Privacy):
डिजिटल माध्यमों पर व्यक्तिगत डाटा के संग्रह और विश्लेषण से नागरिकों की निजता खतरे में है। आधार डेटा, सोशल मीडिया गतिविधियाँ और ऑनलाइन निगरानी (Surveillance) के उदाहरण इस खतरे को उजागर करते हैं। - अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:
सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स पर सेंसरशिप, ट्रोलिंग, और फेक न्यूज के कारण अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होती जा रही है। - साइबर अपराध और डेटा सुरक्षा:
ऑनलाइन ठगी, हैकिंग, और पहचान चोरी जैसे अपराध मानव की सुरक्षा और गरिमा पर हमला करते हैं। - डिजिटल विभाजन (Digital Divide):
ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों, अमीर और गरीब के बीच डिजिटल संसाधनों की असमानता भी एक नया मानवाधिकार प्रश्न बन चुकी है। जो व्यक्ति इंटरनेट या तकनीकी साधनों से वंचित हैं, वे आधुनिक अधिकारों से भी वंचित रह जाते है ।
मानवाधिकार संरक्षण हेतु उपाय-
- कड़े डेटा सुरक्षा कानूनों का निर्माण एवं पालन।
- साइबर अपराध नियंत्रण तंत्र को सशक्त बनाना।
- डिजिटल साक्षरता अभियान का विस्तार ताकि हर नागरिक डिजिटल साधनों का सही उपयोग कर सके।
- अंतरराष्ट्रीय सहयोग द्वारा डिजिटल मानवाधिकार मानदंडों की स्थापना।
- सरकार और नागरिक समाज के बीच संवाद ताकि तकनीक का विकास “मानव-केंद्रित” रहे, न कि “सिस्टम-केंद्रित”।
डिजिटलाइजेशन स्वयं में मानव विकास का प्रतीक है, परंतु यदि इसे मानवीय मूल्यों और अधिकारों से जोड़े बिना आगे बढ़ाया जाए, तो यह विकास अधूरा रहेगा। आवश्यकता इस बात की है कि तकनीक मानवता की सेवा में रहे, न कि मानव तकनीक का दास बन जाए।
इसलिए, मानवाधिकार और डिजिटलाइजेशन को विरोधी नहीं, बल्कि परस्पर पूरक बनाकर ही हम एक सुरक्षित, समावेशी और न्यायपूर्ण डिजिटल समाज का निर्माण कर सकते हैं।
By - Dr. Arvind Singh, Chairman प्रदेश मानवाधिकार संगठन
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