बिपिन चंद्र पाल जयंती-प्रदेश मानवाधिकार संगठन

बिपिन चंद्र पाल (७ नवंबर, १८५८ - २० मई १९३२) एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी तथा भारत में क्रान्तिकारी विचारों के जनक थे। भारतीय स्वाधीनता आंदोलन की रूपरेखा तैयार करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाली लाल-बाल-पाल की तिकड़ी में से एक विपिनचंद्र पाल राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ शिक्षक, पत्रकार, लेखक व वक्ता भी थे और उन्हें भारत में क्रांतिकारी विचारों का जनक भी माना जाता है। लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक एवं विपिनचन्द्र पाल (लाल-बाल-पाल) की इस तिकड़ी ने १९०५ में बंगाल विभाजन के विरोध में अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आंदोलन किया जिसे बड़े स्तर पर जनता का समर्थन मिला।'गरम' विचारों के लिए प्रसिद्ध इन नेताओं ने अपनी बात तत्कालीन विदेशी शासक तक पहुँचाने के लिए कई ऐसे तरीके अपनाए जो एकदम नए थे। इन तरीकों में ब्रिटेन में तैयार उत्पादों का बहिष्कार, मैनचेस्टर की मिलों में बने कपड़ों से परहेज, औद्योगिक तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में हड़ताल आदि शामिल हैं।
उनके अनुसार विदेशी उत्पादों के कारण देश की अर्थव्यवस्था खस्ताहाल हो रही थी और यहाँ के लोगों का काम भी छिन रहा था। उन्होंने अपने आंदोलन में इस विचार को भी सामने रखा। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान गरम धड़े के अभ्युदय को महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इससे आंदोलन को एक नई दिशा मिली और इससे लोगों के बीच जागरुकता बढ़ी। राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान जागरुकता पैदा करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही। उनका विश्वास था कि केवल प्रेयर पीटिशन से स्वराज नहीं मिलने वाला है।
पाल की कुछ प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं -
इंडियन नेस्नलिज्म
नैस्नल्टी एंड एम्पायर
स्वराज एंड द प्रेजेंट सिचुएशन
द बेसिस ऑफ़ रिफार्म
द सोल ऑफ़ इंडिया
द न्यू स्पिरिट
स्टडीज इन हिन्दुइस्म
क्वीन विक्टोरिया – बायोग्राफी
पत्रिकाओं का सम्पादन
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विपिनचन्द्रपाल ने लेखक और पत्रकार के रूप में बहुत समय तक कार्य किया। १८८६ में उन्होने सिलहट से निकलने वाले 'परिदर्शक' नामक साप्ताहिक में कार्य आरम्भ किया। उनकी कुछ प्रमुख पत्रिकाएं इस प्रकार हैं-
परिदर्शक (1880)
बंगाल पब्लिक ओपिनियन ( 1882)
लाहौर ट्रिब्यून (1887)
द न्यू इंडिया (1892)
द इंडिपेंडेंट, इंडिया (1901)
बन्देमातरम (1906, 1907)
स्वराज (1908 -1911)
द हिन्दू रिव्यु (1913)
द डैमोक्रैट (1919, 1920)
बंगाली (1924, 1925)
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