वह यादगार दिन जब अंग्रेजों को खदेड़ने के बाद नेताजी सुभाष ने संभाली थी अंडमान निकोबार की बागडोर-प्रदेश मानवाधिकार संगठन

वह यादगार दिन जब अंग्रेजों को खदेड़ने के बाद नेताजी सुभाष ने संभाली थी अंडमान निकोबार की बागडोर-
आजाद हिंद फौज' और जापानी सेना का संयोग
साल था 1942, अनगिनत कुर्बानियों और अनेको वर्षों संघर्ष करने के बाद भी स्वाधीनता के सूरज की लालीमा भरी एक किरण भी अब तक नसीब नहीं हुई थी। उन दिनों द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ चुका था. जिसमें जापान ब्रिटेन के खिलाफ लड़ रहा था। इसी बीच नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने एशिया के विभिन्न देशों में बसे भारतीयों का सहयोग लेकर 'आजाद हिंद फौज' को संगठित कर किया. अंडमान के द्वीपों में आज़ाद हिंद फौज जब देश की आज़ादी के लिए अंग्रेजों से लड़ रही थी. उसी समय जापानी सेना भी अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते 1942 में अंडमान-निकोबार द्वीप समूह तक आ पहुंची, जिसने आज़ाद हिंद फ़ौज के लिए संजीवनी बूटी का काम किया। भीषण संघर्ष के बाद 23 मार्च 1942 को जापानी सेना ने अंडमान के द्वीपों पर अपना कब्जा कर लिया.
नेताजी ने अंडमान-निकोबार द्वीप में फहराया 'तिरंगा'-
तब तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने अंतरिम आजाद हिंद सरकार का गठन कर लिया था. और जापानियों के साथ नेताजी के संबंध और भी ज्यादा मजबूत हो चुके थे. जिसके चलते नेताजी ने 25 अक्टूबर 1943 को अंग्रेजी सरकार के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. वैश्विक परिदृश्य और नेताजी बोस के साथ बन चुके मधुर संबंधो का सुखद परिणाम ये हुआ कि #6नवंबर1943 को अंडमान-निकोबार द्वीपों की कमान नेताजी की अंतरिम सरकार को सौंप दी गई. आखिरकार 30 दिसंबर 1943 का वो दिन भी आ गया, जब स्वतंत्रता सेनानी और आजाद हिंद फौज के संस्थापक नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सबसे पहले ‘स्वतंत्र भारत’ के अहम हिस्से अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में यूनियन जैक उतार कर भारत का राष्ट्र ध्वज यानी 'तिरंगा' फहराया।
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